Tuesday, 15 April 2014

आत्म-निरीक्षण


एक छोटा सा लड़का जो कि लगभग ११-१२ वर्ष का रहा होगा ,एक दवाई कि दुकान में गया और उसके मालिक से एक फ़ोन मिलाने कि आज्ञा ली.फिर उसने एक बड़ा सा बक्सा खिसकाया और उस पर चढ़ गया जिससे कि वह ऊपर रखे हुए फ़ोन तक पहुँच सके . 

दुकान का मालिक चुपचाप उस लड़के कि बातचीत सुनने लगा .बालक ने एक महिला को फ़ोन मिलाया और बोला , " क्या आप मुझे अपना बगीचा और लॉन काटने का काम दे सकती हैं ?"

इस पर वह महिला फ़ोन के दूसरी ओर से बोली ," मेरे लॉन कि  कटाई का काम पहले से कोई कर रहा है . बालक , " किन्तु ,मैं आपके लॉन कि कटाई का काम उससे आधे दाम पर करने के लिए तैयार हूँ ."

महिला , " जो लड़का मेरे लॉन की कटाई का काम कर रहा है , मैं उसके काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ . "

इस पर वह  बालक ओर अधिक निश्चय पूर्वक बोला , " मैं आप के लॉन के  चारों  ओर का रास्ता भी साफ़ कर दिया करूँगा ओर आप के  घर के बाहर    के शीशे  भी साफ़ कर दिया करूंगा ."


महिला बोली ," नहीं , मुझे किसी की  आवश्यकता नहीं है ,धन्यवाद ," यह सुन कर वह  बालक मुस्कुराया ओर उसने फोन रख दिया ."

दुकान का मालिक जो कि उस लड़के कि बातचीत  सुन रहा था , उसकी ओर आया ओर बोला ,"बेटा ,मुझे तुम्हारा आत्मविश्वास ओर सकारात्मक दृष्टिकोण देख कर बहुत  अच्चा लगा .

मुझे तुम्हे नौकरी पर रख कर वास्तव मैं ख़ुशी होगी .क्या तुम मेरे लिए काम करना पसंद करोगे ?"इस पर वह  बालक बोला,"धन्यवाद,पर मैं कोई नौकरी नहीं करना चाहता ."

दुकान का मालिक बोला," लेकिन , बेटा तुम तो अभी-अभी फोन पर नौकरी के लिए  गिडगिडा रहे थे ."

इस पर बालक बोला," नहीं महोदय , मैं तो केवल  अपनी कार्यकुशलता का परीक्षण  कर रहा था . दरअसल , जिस महिला को मैंने फोन किया था मैं उसी के लिए कार्य करता हूँ  ."

 वह आगे बोला," ओ'र , उससे बात करने के पश्चात  यह जान कर मुझे बहुत अधिक आत्मसंतोष मिल रहा है कि वह महिला मेरे कार्य से पूर्ण रूप से संतुष्ट है  ."

क्या हम लोग इस छोटे से बालक  से आत्म निरीक्षण  करने की  प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं  ..........................?  

Thursday, 10 April 2014

ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट

प्राचीन यूनान में सुकरात को महाज्ञानी माना जाता था. एक दिन उनकी जान पहचान का एक व्यक्ति उनसे मिला

Socrates Teaching in Hindi
सत्य, अच्छाई ,उपयोगिता
और बोला, ” क्या आप जानते हैं मैंने आपके एक दोस्त के बारे में क्या सुना ?”
“एक मिनट रुको,” सुकरात ने कहा, ” तुम्हारे कुछ बताने से पहले मैं चाहता हूँ कि तुम एक छोटा सा टेस्ट पास करो. इसे ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट कहते हैं.”
“ट्रिपल फ़िल्टर ?”
” हाँ, सही सुना तुमने.”, सुकरात ने बोलना जारी रखा.” इससे पहले की तुम मेरे दोस्त के बारे कुछ बताओ , अच्छा होगा कि हम कुछ समय लें और जो तुम कहने जा रहे हो उसे फ़िल्टर कर लें. इसीलिए मैं इसे ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट कहता हूँ. पहला फ़िल्टर है सत्य.
क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि जो तुम कहने जा रहे हो वो सत्य है?
“नहीं”, व्यक्ति बोला, ” दरअसल मैंने ये किसी से सुना है और ….”
” ठीक है”, सुकरात ने कहा. ” तो तुम विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि ये सत्य है या असत्य. चलो अब दूसरा फ़िल्टर ट्राई करते हैं, अच्छाई का फ़िल्टर. ये बताओ कि जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो क्या वो कुछ अच्छा है ?”
” नहीं , बल्कि ये तो इसके उलट…..”
“तो”, सुकरात ने कहा , ” तुम मुझे कुछ बुरा बताने वाले हो , लेकिन तुम आश्वस्त नहीं हो कि वो सत्य है. कोई बात नहीं, तुम अभी भी टेस्ट पास कर सकते हो, क्योंकि अभी भी एक फ़िल्टर बचा हुआ है: उपयोगिता का फ़िल्टर. मेरे दोस्त के बारे में जो तू बताने वाले हो क्या वो मेरे लिए उपयोगी है?”
“हम्म्म…. नहीं , कुछ ख़ास नहीं…”
“अच्छा,” सुकरात ने अपनी बात पूरी की , ” यदि जो तुम बताने वाले हो वो ना सत्य है , ना अच्छा और ना ही उपयोगी तो उसे सुनने का क्या लाभ?” और ये कहते हुए वो अपने काम में व्यस्त हो गए..............

ईश्वर की मर्ज़ी



एक बच्चा अपनी माँ के साथ एक दुकान पर शॉपिंग करने गया तो दुकानदार ने उसकी मासूमियत देखकर उसको सारी टॉफियों के डिब्बे खोलकर कहा-: "लो बेटा टॉफियाँ ले लो...!!!"

पर उस बच्चे ने भी बड़े प्यार से उन्हें मना कर दिया. उसके बावजूद उस दुकानदार ने और उसकी माँ ने भी उसे बहुत कहा पर वो मना करता रहा. 


हारकर उस दुकानदार ने खुद अपने हाथ से टॉफियाँ निकाल कर उसको दीं तो उसने ले लीं और अपनी जेब में डाल ली....!!!!


वापस आते हुऐ उसकी माँ ने पूछा कि"जब अंकल तुम्हारे सामने डिब्बा खोल कर टाँफी दे रहे थे , तब तुमने नही ली और जब उन्होंने अपने हाथों से दीं तो ले ली..!! .........ऐसा क्यों..??"


तब उस बच्चे ने बहुत खूबसूरत प्यारा जवाब दिया -: "माँ मेरे हाथ छोटे-छोटे हैं... अगर मैं टॉफियाँ लेता तो दो तीन

टाँफियाँ ही आती जबकि अंकल के हाथ बड़े हैं इसलिये ज्यादा टॉफियाँ मिल गईं....!!!!!"

बिल्कुल इसी तरह जब भगवान हमें देता है तो वो अपनी मर्जी से देता है और वो हमारी सोच से परे होता है,

हमें हमेशा उसकी मर्जी में खुश रहना चाहिये....!!!
क्या पता......................??
वो किसी दिन हमें पूरा समंदर देना चाहता हो और हम हाथ में चम्मच लेकर खड़े हों....................!!!!!!!!!!!!!!!!!!

हिम्मत मत हारो



एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।



किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है ,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।

सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा ,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े
रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

अतः याद रखो !जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए
१)नकारात्मक विचारों को उनके विपरीत सकारात्मक विचारों से विस्थापित करते रहो।
२)आलोचनाओं से विचलित न हो बल्कि उन्हें उपयोग में लाकर अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो।

रेत और पत्थर



दो मित्र साथ-साथ एक रेगिस्तान में चले जा रहे थे । रास्ते में दोनों में कुछ तू-तू ,मैं -मैं हो गई। बहसबाजी में बात इतनी बढ़ गई की उनमे से एक मित्र ने दूसरे के गाल पर जोर से झापड़ मार दिया। जिस मित्र को झापड़ पड़ा उसे दुःख तो बहुत हुआ किंतु उसने कुछ नहीं कहा । वह झुका और उसने रेत पर लिख दिया ,"आज मेरे सबसे निकटतम मित्र ने मुझे झापड़ मारा। "


दोनों मित्र आगे चलते रहे और उन्हें एक पानी का तालाब (OASIS)दिखा और उन दोनों ने पानी में उतर कर नहाने का निर्णय कर लिया । जिस मित्र को झापड़ पड़ा था ,वह दलदल में फँस गया और डूबने लगा । किंतु उसके मित्र ने उसे बचा लिया । जब वेह मित्र बच गया तो बाहर आकर उसने एक पत्थर पर लिखा,"आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचाई।"


जिस मित्र ने उसे झापड़ मारा था और फिर उसकी जान बचाई थी ,से न रहा गया और उसने पूछा,"जब मैंने तुम्हे मारा था तो तुमने रेत में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा,ऐसा क्यों?"
इस पर दूसरे मित्र ने उत्तर दिया," जब कोई हमारा दिल दुखाये ,तो हमें उस अनुभव के बारे में रेत में लिखना चाहिए जिससे की' क्षमा' रुपी वायु शीघ्र ही उसे मिटा दे। किंतु जब कोई हमारे साथ कुछ अच्छा करे तो हमे उस अनुभव को पत्थर पर लिख देना चाहिए जिससे कि कोई भी वायु उस अनुभव को कभी भी मिटा न सके."

UNUSUAL TRUTH & QUESTIONS

प्रश्न:
1. यदि हम हमारी गलतियों से ही सीखते है तो गलतीयाँ करने से इतना डरते क्यों है?
2. क्या difference है, जिंदा होने में और वाकई जीने में ?
3. जो धर्म प्रेम और भाईचारे का सन्देश देते है, आखिर उनके कारण इतनी लडाइयां क्यों होती है?
4. क्या आप उसी तरह के मित्र है जैसा आप स्वयं के लिए चाहते है?
5. क्या प्यार और sex equal है?
6. अगर भारत की currency रुपये न होकर ‘खुशियाँ’ होती, तो आप कौनसे कार्य करते जो आपको सबसे अमीर बना देती?
7. क्या आप वो कर रहे है जिसमे आपको विश्वास है? या आप उसी को स्वीकार कर चुके है जो आपको मिल रहा है?
8. अगर इंसानों की उम्र केवल 40 वर्ष होती, तो आप कैसे जीते इसे?
9. आप किस्मे अधिक विश्वास रखते है? सही तरह से कार्य करने में या फिर सही कार्य करने में?
10. अगर आपको ये पता चल जाए, की आप जिन्हें भी जानते है उनकी कल मृत्यु हो जायेगी तो आप आज किसे मिलने जायेंगे?
11. अगर आप किसी नन्हे बच्चे को केवल एक advise देना चाहे तो वो क्या होगी?
12. एक ऐसी क्या चीज़ है जो आप वाकई करना चाहते है पर कर नहीं सकते? क्या रोक रहा है आपको उसे करने से?
13. आप एक चिंताग्रस्त ज्ञानी होना चाहेंगे या फिर एक खुशनुमा normal person?
14. क्या अभी तक आपका सबसे भयानक सपना सच हुआ?
15. क्या आप कम कार्य करना चाहेंगे? या फिर आपका पसंद का ज्यादा कार्य करना चाहेंगे?
16. आख़िरी बार आपने अपनी ही सांसो की आवाज कब सुनी थी?
17. जब आप 90 वर्ष के हो जाओगे. तो आपके लिए सबसे ज्यादा मायने क्या रखेगा?
18. decisions लिए जा रहे है आपकी जिंदगी के, सवाल ये है: क्या आप खुद वो decisions ले रहे है या फिर कोई और आपकी जिंदगी के decisions ले रहा है?
19. अगर आपके पास दुनिया की सारी दौलत हो, फिर भी आपको कोई कार्य करना हो तो वो क्या होगा?
20. अभी तक की जिंदगी में आप क्या regret करते है?
21. अगर आप स्वर्ग के दरवाज़े पर खड़े हो, और भगवान् आपसे पूछे; “मैं तुम्हे अन्दर क्यों आने दूँ?” तो आपका जवाब क्या होगा?
22. ऐसी क्या छोटी छोटी चीज़े है जो आप दूसरों के दिन को बेहतर बनाने के लिए कर सकत है?
23. आप इस दुनिया पर क्या impact छोड़ना चाहते है?
24. आख़िरी बार आपने कब कुछ नया try किया था?
25. ऐसा कौनसा सबक है जो आपने life में बहुत मुश्किलों को फेस करने के बाद सीखा?
26. आपको क्या लगता है? 5 साल पहले आपको क्या करना चाहिए था?
27. वाकई जीने में और केवल मौजूद रहने में क्या difference है?
28. अगर अभी नहीं तो फिर कब?
29. क्या आपने पिछले दिनों याद करने लायक कोई कार्य किया है?
30. अगर आपको कुछ पढाना होता, तो आप क्या पढ़ाते?
31. ऐसा क्या है, जो आपकी life में नहीं हुआ, या आपके साथ न हुआ तो आपको regret होगा?
32. क्या एक भूखे बच्चे का पेट भरने के लिए चोरी करना ग़लत है?
33. जब जिंदगी आपको गिरा देती है तो क्या होता है जो आपको फिर से उठने में मदद करता है?
34. क्या आपको कभी किसी बात को पछतावा हुआ है जो आपने नहीं की या नहीं कही?
35. हम तभी लोगों को क्यों यद् करते है जब वो चले जाते है?
36. प्यार देना ज्यादा important है या प्यार पाना?
37. अगर आपको doctor 5 साल अधिक दे जीने के लिए, तो आप क्या accomplish करेगे?
38. क्या गम के बिना ख़ुशी हो सकती है?
39. ऐसी क्या एक बात होगी जो आपकी जिंदगी के बाद भी लोग याद रखे, ऐसा आप चाहेंगे?
40. क्या कोई चीज़ या कोई व्यक्ति perfect हो सकता है?
41. इंसान होने का अर्थ क्या है?
42. क्या आप स्वयं से ख़ुश है?
43. क्या आपको ऐसा कोई समय याद है जब ऐसी बात जिसे आप impossible समझते थे, वो हो गयी?
44. आप अपना अधिकतर समय कैसे बिताते है?
45. किसी दुसरे की मदद आपने पिछले कुछ दिनों में कैसे की?
46. recently आपने ऐसा क्या सीखा जिससे आपकी जिंदगी बदल गयी?
47. सबसे प्यारी बात जो किसी ने आपके लिए की हो?
48. ऐसी चीज़ जो आप कभी नहीं करेगे?
49. आपकी जिंदगी में आपने ऐसा क्या किया है जिससे किसी दूसरे को hurt हुआ?
50. आख़िरी बार कब आपने किसी के लिए कुछ अच्छा किया हो, पर return में कुछ expect नहीं किया?
दोस्तों, हर सवाल का जवाब आप खुद सोचिये. गौर से सोचिये. अगर अभी समय नहीं है तो इस पेज को bookmark कर लीजिये और बाद में पढ़िए. 
हर सवाल अच्छा है. और उसके जवाब आपको एक आईना दिखायेगे. 
अगर आप अपने जवाब हमसे शेयर करना चाहे तो comments में ऐसा कर सकते है. 




Saturday, 5 April 2014

plz DONATE & HELP 'AAP'

TO
Each & Every INDIAN

As an Indian voter I have always been disillusioned by the elections, because many of the candidates have criminal records. From fraud and rioting, to serious offenses like murder and even rape - are these the people we want to represent us in Parliament? How can the law-breakers become law-makers?

But with the emergence of the Aam Aadmi Party there is new hope for India. It’s not just about Arvind Kejriwal, but so many good, well meaning and well educated candidates.

This is why I have donated to help support my AAP candidate's campaign.

The Aam Aadmi Party is counting on support from ordinary citizens like you and me, and we cannot let them down. Join me in funding the political change India deserves.

While the BJP and Congress have a large number of candidates who are accused of rape, murder, abduction and corruption, the Aam Aadmi Party has pledged to keep only 'clean candidates for clean politics'.

Recently I was reassured when Arvind expelled two senior party members for indulging in corruption. This clearly shows how serious they are about tackling corruption whether within the party or outside. That is why I strongly feel that we need to support Aam Aadmi Party with a donation today.

Thank you for joining me to make a difference.

Sincerely,
ADITYA PANDEY

Wednesday, 2 April 2014

A must read on GANDHI BABA


वह अधनंगा फकीर! By भारत यायावर 




गांधी जब गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए थे, तब चर्चिल का दिया हुआ फिकरा पूरे लंदन में प्रसिद्ध हो चुका था - 'अधनंगा फकीर' ! गांधी अपने उसी लोकप्रिय वेश में लंदन गए थे - लँगोटी बांधे, हाथ में लाठी लिए। साथ में उनके कुछ शिष्य और वह बकरी, जिसका दूध वे पिया करते थे। वहाँ के लोग यह देखकर दंग रह गए कि गांधी लँगोटी और चप्पल पहने ब्रिटिश सम्राट के साथ चाय पीने और वार्ता करने बर्मिंघम पैलेस पहुँच गए। इन दोनों की मुलाकातों की व्यापक रूप में चर्चा हुई। एक पत्रकार ने जब गांधी से पूछा - क्या इस पोशाक में जाना उचित था, तो गांधी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया - 'सम्राट ने जितने कपड़े पहने थे वह हम दोनों के लिए काफी थे।' गांधी ने वहाँ लंदन में, जहाँ उनके ठहरने का प्रबंध एक आलीशान होटल में किया गया था, उसे छोड़कर ईस्ट एंड की गंदी बस्तियों के एक छोटे-से कुटीर में रहना पसंद किया। वहाँ गांधी ने जॉर्ज बनार्ड शॉ, चार्ली चैप्लिन, हैरोल्ड लॉस्की, मारिया मांटेसरी आदि से मुलाकात की, जिनका विवरण वहाँ के समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुआ। वे लंकाशायर के उन मजदूरों से मिले जो भारत में उनके द्वारा चलाए जा रहे स्वदेशी आंदोलन के कारण बेरोजगार हो गए थे। इंग्लैंड की आम जनता लंदन की सड़कों से गुजरते हुए गांधी को देखने के लिए अपने घरों से निकलकर उमड़ पड़ी थी। मानो वह बीसवीं शताब्दी के ईसामसीह का दर्शन कर रही हो। ऐसे ही होंगे ईसा - अर्द्धनग्न - प्रेम का संदेश जन-जन तक फैलाने वाले!
हिंसा और युद्ध से जर्जर मानवता को अहिंसा और प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले गांधी के व्यक्तित्व ने पूरे यूरोप की जनता में एक गहरी छाप छोड़ी थी। उन्होंने एक रेडियो-वार्ता में कहा - 'सारी दुनिया का ध्यान भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की ओर आकर्षित हुआ है, क्योंकि हमने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जो तरीके अपनाए हैं, वे अनोखे हैं। ...दुनिया खून बहाते-बहाते तंग आ चुकी है। दुनिया इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता खोज रही है और मैं यह विश्वास प्रकट करके अपनी पीठ खुद ठोक रहा हूँ कि शायद लालायित दुनिया को मुक्ति का मार्ग दिखाने का श्रेय भारत की प्राचीन भूमि को ही प्राप्त होगा।'
जब चारों ओर हिंसा का वीभत्स खेल चल रहा था, गांधी ने उसके बरक्स अहिंसा का सिद्धांत रखा था। उन्होंने सशस्त्र विद्रोह के बजाय नैतिक आंदोलन के सहारे, आतंकवादियों के बमों के धमाकों की जगह अवहेलनापूर्ण मौन के सहारे, बंदूकों की गोलियों की बौछार की जगह प्रार्थना के सहारे भारत में जन-साधारण को संगठित कर ब्रिटिश उपनिवेशवाद की जड़ें हिला दी थीं। उनके दुबले-पतले शरीर और आचरण की सहज प्रतिभा में एक संत, एक फकीर, एक महात्मा के लक्षण देख देश की करोड़ों जनता उनके साथ चल पड़ी थी। गांधी ने आज के नेताओं की तरह उन्हें कोई लोभ, लालच न दिखाकर यह चेतावनी दी थी - 'जो लोग मेरे साथ आएँ वे खाली जमीन पर सोने के लिए, मोटा कपड़ा पहनने के लिए, भोर पहर बहुत जल्दी उठने के लिए, सीधा-सादा नीरस खाना खाकर पेट भरने और यहाँ तक कि अपना पाखाना स्वयं साफ करने के लिए तैयार रहें।'
उस अधनंगे फकीर ने जीवन की एक ऐसी शैली, एक ऐसी प्रणाली विकसित की थी, जो उसे बुद्ध और कबीर से मिली थी। बुद्ध भी इसी तरह लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व अपने राजसी वस्त्र उतार कर अधनंगे फकीर बने थे और लगातार घूमते रहे थे, जन-जन में समता, भाईचारा और अहिंसा की ज्योति जगाई थी। गांधी जाति-पाँति को तोड़ने वाले, वंचितों में मनुष्य होने का स्वाभिमान भरने वाले, हिंदू-मुस्लिम एकता की नींव रखने वाले, स्वदेशी का मंत्र फूंकने वाले, आधुनिक बुद्ध थे। वे ईसा की तरह साधारण लोगों में प्रेम और राग की ऐसी वाणी लेकर जाते थे कि लोगों को वे अपने आत्मीय या 'आत्मा के मित्र' की तरह लगते थे। वे कबीर की तरह रूढ़ियों को तोड़ने वाले और सभी मनुष्यों में एक ही ईश्वर बसता है, राम-रहीम एक है, हिंदू और मुसलमान एक जैसे ही मनुष्य हैं, ब्राह्मण और शूद्र में कोई अंतर नहीं है - का संदेश जन-जन तक फैलाते थे। वे कबीर की तरह ही प्रतिदिन चरखा चलाते थे और उसके सूत से जो आमदनी होती थी, उसी से अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते थे।
गांधी में संतों की वाणी का सार था। उनका मानना था कि आजादी मिलने के बाद सभी मंत्री साधारण कुटिया में निवास करें। वे वेतन नहीं लें। अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए वे स्वयं कुछ काम करें। भारत के लोगों की तभी वे निस्वार्थ भाव से सेवा कर सकते हैं। राजसी ठाट-बाट से, ऐश्वर्य से रहने वाला सत्ताधारी वर्ग गरीब किसानों के बारे में क्या सोच सकता है? 15 अगस्त, 1947 . को आजादी मिलने के बाद भी भारत के गवर्नर जनरल का पद सुशोभित करने के लिए नेहरू ने लुई माउंटबैटेन से आग्रह किया। किंतु गांधी 'एक अछूत भंगी लड़की को, जिसका इरादा पक्का हो, जो भ्रष्टाचार से कोसो दूर हो और हीरे की तरह शुद्ध हो' - को इस पद पर आसीन करना चाहते थे। लेकिन जब माउंटबैटेन को गवर्नर जनरल बना दिया गया तो गांधी ने उनसे अनुरोध किया कि वे लुटियंस के बनाने इस भव्य भवन (मौजूदा राष्ट्रपति भवन) को छोड़कर किसी साधारण घर में रहें, जहाँ नौकर-चाकर नहीं हो, लाव-लश्कर, सरकारी तामझाम न हो। गांधी चाहते थे कि लुटियंस के बनाए इस महल को एक अस्पताल में परिवर्तित कर दिया जाए।
लेकिन गांधी का यह सपना पूरा नहीं हुआ। आजादी के बाद सत्ताधारी वर्ग किस तरह सुख-ऐश्वर्य में लिप्त हुआ, वह निरंतर धनाढ्य होने की आकांक्षा में किस तरह भ्रष्टाचार के दलदल में धँसता गया, यह हमारे सामने प्रत्यक्ष है। सादगी, सचरित्रता, तप, त्याग, प्रेम, करुणा भारत के प्रभुवर्ग में सिरे से नदारत था। यही कारण है कि भारत का जो विकास होना चाहिए था, नहीं हुआ। आत्मनिर्भरता का जो पाठ गांधी ने पढ़ाया था, वह विदेशी पूँजी के निरंतर आगमन से धूमिल हो गया। नव उपनिवेशवाद ने भारत को चूसना जारी रखा। भारत में जाति-प्रथा तो समाप्त नहीं हुई, अपितु हर जाति के मजबूत संगठन उभरे और हर जाति के अपने नेता। कांग्रेस ने एक परिवार की पार्टी बनकर देश को पतनशीलता के दलदल में फँसा दिया। आजादी के बाद कांग्रेस को सत्ता का व्यामोह त्यागकर एक जनसेवी संस्था के रूप में काम करना चाहिए, ऐसा उस अधनंगे फकीर का मानना था, किंतु कांग्रेस सिर्फ सत्ता के खेल में फँसी रह गई और गांधी के सपनों का भारत चूर-चूर हो गया।
उस अधनंगे फकीर ने लगातार सक्रिय और गतिशील जीवन जिया था। वह टैगोर के 'एकला चलो रे' गीत को बराबर गुनगुनाते थे। यह उनमें एक उत्साह जगाए रहती थी। चलते रहो और निरंतर कर्मशील रहो - गांधी ने इसे जीवनभर निभाया।
गांधी कायरता और निकम्मेपन के विरोधी थे। उनका जीवन स्वयं में एक आंदोलन था। उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था, हिंसा नहीं की थी, किंतु उन्हें इतनी बार जेल-यात्रा करनी पड़ी थी, कि उसका भी एक विश्व-कीर्तिमान है। उन्होंने कुल 2,338 दिन जेल में बिताए थे। 249 दिन दक्षिण अफ्रीका के जेलों में और 2089 दिन भारत के जेलों में। उनका मस्तक भय से रहित था और चित्त में स्वाधीनता का भाव भरा था। वे सिर झुकाकर चलने वाले व्यक्ति नहीं थे। कायरता तो उनमें थी ही नहीं। जीवन भर सत्य का प्रयोग करने वाले गांधी को 'महात्मा' के रूप में जन-जन ने इसीलिए स्वीकार किया था। गांधी ने स्वतंत्र भारत के लिए जो इच्छा व्यक्त की थी, वह पूरी तो नहीं हुई, इसकी उम्मीद भी नहीं है किंतु उनकी यह अमरवाणी सदैव गुंजायमान होती रहेगी - 'मैं भारत को स्वतंत्र और शक्तिशाली देखना चाहता हूँ ताकि वह सारी दुनिया की भलाई के लिए शुद्ध मन से और अपनी इच्छा से त्याग कर सके। जब व्यक्ति का मन शुद्ध होगा तो वह परिवार के लिए त्याग करेगा, परिवार गाँव के लिए, गाँव जिले के लिए, जिला प्रांत के लिए, प्रांत राष्ट्र के लिए और राष्ट्र सबके लिए। मैं खुदाई राज चाहता हूँ, इस धरती पर ईश्वर का राज।'


निर्बल के बल राम
मोहनदास करमचंद गांधी
धर्मशास्त्र का और दुनिया के धर्मो का कुछ भान तो मुझे हुआ, पर उतना ज्ञान मनुष्य को बचाने के लिए काफी नही होता। संकट के समय जो चीज मनुष्य को बचाती है, उसका उसे उस समय न तो भान होता है, न ज्ञान। जब नास्तिक बचता है तो वह कहता है कि मैं संयोग से बच गया। ऐसे समय आस्तिक कहेगा कि मुझे ईश्वर ने बचाया। परिणाम के बाद वह यह अनुमान कर लेता है कि धर्मों के अभ्यास से संयम से ईश्वर उसके हृदय मे प्रकट होता है। उसे ऐसा अनुमान करने का अधिकार है। पर बचते समय वह नहीं जानता कि उसे उसका संयम बचाता है या कौन बचाता है। जो अपनी संयम शक्ति का अभिमान रखता है, उसके संयम को धूल मिलते किसने नहीं जाना है? ऐसे समय शास्त्र ज्ञान तो छूछे जैसा प्रतीत होता है।
बौद्धिक धर्मज्ञान के इस मिथ्यापन का अनुभव मुझे विलायत में हुआ। पहले भी मैं ऐसे संकटों में से बच गया था, पर उनका पृथक्करण नहीं किया जा सकता। कहना होगा कि उस समय मेरी उमर बहुत छोटी थी। पर अब तो मेरी उमर 20 साल की थी। मैं गृहस्थाश्रम का ठीक-ठीक अनुभव ले चुका था।
बहुत करके मेरे विलायत निवास के आखिरी साल में, यानी 1890 के साल में पोर्टस्मथ में अन्नाहारियों का एक सम्मेलन हुआ था। उसमें मुझे और एक हिंदुस्तानी मित्र को निमंत्रित किया गया था। हम दोनो वहाँ पहुँचे। हमें एक महिला के घर ठहराया गया था। पोर्टस्मथ खलासियों का बंदरगाह कहलाता है। वहाँ बहुतेरे घर दुराचारिणी स्त्रियों के होते हैं। वे स्त्रियाँ वेश्या नहीं होती, न निर्दोष ही होती हैं। ऐसे ही एक घर में हम लोग टिके थे। इसका यह मतलब नहीं कि स्वागत समिति ने जान-बूझकर ऐसे घर ठीक किए थे। पर पोर्टस्मथ जैसे बंदरगाह में जब यात्रियों को ठहराने के लिए डेरों की तलाश होती है, तो यह कहना मुश्किल ही हो जाता है कि कौन से घर अच्छे हैं और कौन से बुरे।
रात पड़ी। हम सभा से घर लौटे। भोजन के बाद ताश खेलने बैठे। विलायत में अच्छे भले घरों में भी इस तरह गृहिणी मेहमानों के साथ ताश खेलने बैठती है। ताश खेलते हुए निर्दोष विनोद तो सब कोई करते है। लेकिन यहाँ तो बीभत्स विनोद शुरू हुआ। मैं नहीं जानता था कि मेरे साथी इसमें निपुण हैं। मुझे इस विनोद मे रस आने लगा। मैं भी इसमे शरीक हो गया। वाणी में से क्रिया में उतरने की तैयारी थी। ताश एक तरफ धरे ही जा रहे थे। लेकिन मेरे भले साथी के मन में राम बसे। उन्होंने कहा, 'अरे, तुममें यह कलियुग कैसा! तुम्हारा यह काम नहीं है। तुम यहाँ से भागो।'
मैं शरमाया। सावधान हुआ। हृदय में उन मित्र का उपकार माना। माता के सम्मुख की हुई प्रतिज्ञा याद आई। मैं भागा। काँपता-काँपता अपनी कोठरी में पहुँचा। छाती धड़क रही थी। कातिल के हाथ से बचकर निकले हुए शिकार की जैसी दशा होती है वैसी ही मेरी हुई।
मुझे याद है कि पर-स्त्री को देखकर विकारवश होने और उसके साथ रँगरेलियाँ करने की इच्छा पैदा होने का मेरे जीवन में यह पहला प्रसंग था। उस रात मैं सो नहीं सका। अनेक प्रकार के विचारों ने मुझ पर हमला किया। घर छोड़ दूँ? भाग जाऊँ? मैं कहाँ हूँ? अगर मैं सावधान न रहूँ तो मेरी क्या गत हो? मैंने खूब चौकन्ना रहकर बरतने का निश्चय किया। यह सोच लिया कि घर तो नहीं छोड़ना है, पर जैसे भी बने पोर्टस्मथ जल्दी छोड़ देना है। सम्मेलन दो दिन से अधिक चलने वाला न था। इसलिए जैसा कि मुझे याद है, मैंने दूसरे दिन ही पोर्टस्मथ छोड़ दिया। मेरे साथी पोर्टस्मथ में कुछ दिन के लिए रुके।
उन दिनों मैं यह बिल्कुल नहीं जानता था कि धर्म क्या है, और वह हममें किस प्रकार काम करता है। उस समय तो लौकिक दृष्टि से मैं यह समझा कि ईश्वर ने मुझे बचा लिया है। पर मुझे विविध क्षेत्रों में ऐसे अनुभव हुए है। मैं जानता हूँ कि 'ईश्वर ने बचाया' वाक्य का अर्थ आज मैं अच्छी तरह समझने लगा हूँ। पर साथ ही मैं यह भी जानता हूँ कि इस वाक्य की पूरी कीमत अभी तक मैं आँक नहीं सका हूँ। वह तो अनुभव से ही आँकी जा सकती है। पर मैं कह सकता हूँ कि कई आध्यात्मिक प्रसंगों में वकालत के प्रसंगों में, संस्थाएँ चलाने में, राजनीति में 'ईश्वर ने मुझे बचाया है।' मैंने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं न कहीं से मदद आ ही पहुँचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना-पीना, चलना-बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह चीज है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि यही सच है और सब झूठ है।
ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना, निरा वाणी-विलास नहीं होती। उसका मूल कंठ नहीं, हृदय है। अतएव यदि हम हृदय की निर्मलता को पा लें, उसके तारों को सुसंगठित रखें, तो उनमें से जो सुर निकलते हैं, वे गगनगामी होते है। उसके लिए जीभ की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वभाव से ही अद्भुत वस्तु है। इस विषय में मुझे कोई शंका ही नहीं है कि विकाररूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है। पर इस प्रसादी के लिए हममें संपूर्ण नम्रता होनी चाहिए।